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Wednesday, August 18, 2021

औरत कोई खिलौना नहीं है.............

क्या परमात्मा ने संसार में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए ही बनाया था? क्या मनुष्य के अंदर से दया, करुणा और मानवता का विलुप्तीकरण हो चुका है? इस प्रकार के सवाल हर अच्छे मनुष्य के हृदय में उठना स्वाभाविक है।  आज कल टीवी और अख़बारों में जो न्यूज़ दिखायी जाती है, उससे हृदय विदीर्ण सा हो गया है।  सबसे बड़ी दुर्दशा तो उन मासूम जनता और महिलाओं की है जो वास्तविक रूप से दोसी ही नहीं है।  विशेषकर महिलाएं जो सदा सेवा भाव को संजोये हुवे समर्पण के साथ अपने पति, बच्चों अन्य कुटुम्बी के सेवा में दिन - रात सदा लगी रहती हैं।  क्या  इनकी उपेक्षा समाज में सहनिये है


[यत्र नारी पूजयन्ते , रमन्ते तत्र देवता]

जहाँ पुरुष अपने देश परिवार के हित के लिए तत्पर होता है वहीँ महिलाएं उनका घर परिवार, मातापिता ,  बेटा - बेटी इत्यादि की देखभाल  करती हैं।  आज किसी भी क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका देखी जा सकती है , यदि हम इतिहास पलट कर देखें तो ये कभी भी किसी परुष से योगदान में कम नहीं पायी गयी हैं और शायद इसीलिए महापुरुषों ने भी इन्हें बराबरी का दर्जा दिया है।दूर जाने की आवश्यकता ही नहीं है श्रीरामचंद्र जी तो सदा सिंहासन पर सीता जी के ही साथ बिराजे हैं।  यदि  बात श्री कृष्ण की जाये तो सदैव श्री राधा जी उन्ही के साथ रही हैं।  बात महादेव जी की करे तो देखेंगे कि वे एक वैराग्य पूर्ण जीवन में भी भगवती पार्बती जी के साथ बिराजे हैं।

शायद इन महाशक्तियों को यह आभास रहा होगा कि आने वाले भविष्य में मनुष्य के मानसिकता में परिवर्तन होगा और इसलिए इन्होंने अपने शक्ति स्वरूपा देवियों को साथ रखकर मानव को एक शिक्षा का पाठ पढ़ाया। किन्तु दुर्भाग्य है कि  मनुष्य सब कुछ भूल गया।  मैंने ग्रंथो में पढ़ा है कि " यत्र नारी पूजयन्ते , रमन्ते तत्र देवता " अर्थ यह कि जहाँ पर नारियों को सम्मान मिलता है , उन्हें हैय दृष्टि से नहीं देखा जाता , वहां पर देवताओं का वास होता है। 

लेकिन आज कि बदलते स्वररूप ने महिलाओं कि महत्वपूर्ण आस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है और इसका एक मात्र कारण है पुरुष का अहम् कि मैं मर्द हूँ।  अरे किस बात कि मर्दानगी जब हम एक औरत कि मान- सम्मान कि रक्षा कर सके उसकी देख - रेख कर सके, उसे एक वस्तु कि तरह प्रस्तुत करें यहाँ तक कि हम यह भूल जाएँ कि हमारा जन्म भी किसी स्त्री से ही हुआ है तब किस बात कि मर्दानगी ?

क्या यह कोई खिलौना हैं, कि जब तक जी चाहा खेला और जब जी चाहा फेंक दिया ? माना कि इनमे स्वाभाविक मृदुलता है, यह सहनशीलता कि मूरत हैं, दया और करुणा इनकी मानसिक धरोहर है तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम इनका उपभोग और उपयोग करें।  सच्चाई तो यह है कि यह पुरुष कि जन्म दाता होने कि नाते इन्हे पुरुषों से ज्यादा अधिकार मिलना चाहिए किन्तु दुर्भाग्य है जो ऐसा नहीं हो पा रहा है। महिलायें भी उस परम पिता परमेस्वर की ही संतान हैं जिस से पुरुष ने धरती पर जन्म लिया है तब ऐसा भेद भाव क्यों हो?

अब समय गया है कि हम इन पर बढ़ते हुए अत्याचारों को रोके उस परमेश्वर से डरें कि आख़िर इन पर ज़ुल्म का हिसाब जब वह माँगेगा तो हम क्या जवाब देंगे।  हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी।  अपने कुत्सित विचारों पर अंकुश लगाना होगा इनको भी अपनी जिंदगी जीने  का पूरा अधिकार है।  हम अपना विचार इन पर ज़बरदस्ती थोपें अब चाहे वह कार्य क्षेत्र हो या फिर पहनावा।  हमें औरतों की बलिदान को सदा याद रखना चाहिए , जो वह रोज करती हैं चाहे अपने लालसाओं पर अंकुश लगाकर या फिर मन ही मन घुट कर।  याद रखें यह पुरुषों से सदा सबल हैं और सक्षम भी   इनका सम्मान ही हमारी मर्यादा है।

और हम पुरषों को भी अपनी मर्यादा में ही रहना चाहिए।      

Tuesday, August 17, 2021

Imbalanced Doshas attracts diseases - Ayurveda says.....

 "Happiness and unhappiness that results in health and disease respectively" - Charak Samhita. 

There is a beautiful word quoted in many Ayurvedic textbooks i.e. "Mithya Aahar - Vihar" means intake of improper diet and the leading of improper lifestyle causes all diseases. apart from that many other factors such as the senses, actions, and seasonal factors are also involved to cause several diseases. Unsuitable use of Sense like sound (loud voice-hearing), continuous activity with mobile phones, sudden exposures to cold or heat may cause mental and other sensory organs-related ailments. Action related to the body speech, mind, emotion, etc also involved in attracting many diseases. Among other factors, the seasonal factors play an important role to create many problems for our body as the aggravation of Doshas is directly related to the seasonal variations. 

Vayu (Vata) accumulates during the dry and dehydrating heat of the summer. It becomes aggravated in mid-May to Mid July. Pitta accumulates during the rainy seasons due to the acidic conditions of the atmosphere and weakened digestion. it is aggravated during autumn (Mid September to mid-November) Kapha accumulates during  Shishira (mid-January to mid-March) due to cold and damps caused by the winds, clouds, and rain. It gets more aggravated during the spring (Vasant: mid-March to mid-May) when the warm weather liquefies

Factors involved in increasing doshas - 

1. Vayu Increasing causes - Bitter, salty, and astringent tastes, dry, light, cold food, fasting, waiting longer than 3 to 04 hours between meals, suppression of premature initiations of natural urges, staying awake late at night, prolonged high pitched speaking, excess emesis and purgation, sudden grief, fear, worry and anxiety, excessive exercises or sexual intercourse; the end of the digestive process.      

2. Pitta Increasing causes - Pungent, sour, and salty tastes, foods causing heat and burning sensations eating without appetite, etc. 

3. Kapha Increasing causes - Sweet, sour and salty taste, oily, heavy, or indigestible foods, overeating, cold foods, lack of exercise, excess sleeping, naps, inadequate emesis, and purgation, eating before hungry, etc.

Factors Increasing all Doshas: Improper diet, excess food habit, uncooked, contaminated or incompatible foods, spoiled foods, and drinks; dried vegetables, raw root vegetables, negative thought, living in mountain slopes, improper administration of therapies, being too inactive also increase all Doshas and invite many life-threatening diseases.

Food Intake and Doshas Illness: Improper quantity of foods results in impairing strength, complexion, weight, distention, longevity, virility, and Ojas. it affects the body, mind intellect, and sense, causing harm to the Dhatus (tissues) especially Vayu. Food is taken in excess aggravates all three Doshas. Obstruction is produced in the stomach and move through the upper and lower tracts producing disease according to one's doshas -

Vayu- Colic pain, constipations malaise, dry mouth, fainting, giddiness, irregular digestive power, rigidity, hardening, and contracting of vessels

Pitta: Fever, diarrhea, internal burning sensation, thirst, intoxication, giddiness, and delirium.

Kapha- Vomiting anorexia, indigestion, cold fever, laziness, and heaviness.

So, overall might my readers would understand how to protect from the aggravation of the aforesaid three doshas in the different seasons as well as correct our food and lifestyle to maintain and manage all the three doshas so that we may live a healthy and safe life.

Stay healthy and stay safe. 

Monday, August 16, 2021

वैजयंती माला और श्री कृष्ण। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष।

भगवान श्री कृष्ण को सबसे प्रिये दो वस्तुएं थीं।  एक उनकी मुरली और दूसरी वैजयंती माला।  मुरली तो आप सभी जानते हैं कि बांस की बनी होती है किन्तु क्या आप जानते हैं कि जो भगवान  श्री कृष्ण अपने गले में माला धारण करते हैं वह किस चीज की बानी होती है जी हाँ, वह एक पौधा होता है जिसका वैज्ञानिक नाम है - Coix lacryma-jobi और इसकी फैमिली है - Poaceae. इसको Adlay or Job’s tears भी कहा जाता है।

{Fruiting Plant - Coix lacryma-jobi}

वैजयंती के वृक्ष पर बहुत ही सुंदर फूल उगते हैं। इसके फूल बहुत ही सुगंधित और सुंदर होते हैं। इसके बीजों की माला बनाई जाती है। वैजयंती माला यानी विजय दिलाने वाली माला वैजयंती के फूल भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को बहुत ही प्रिय है। श्रीकृष्ण को यह माला अत्यन्त प्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण हमेशा अपने गले में इसे धारण करते थे।

भगवान श्रीकृष्ण ने जब पहली बार राधा और उनकी सखियों के साथ रासलीला खेली थी, तब राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनाई थी।वैजयंती एक फूल का पौधा है जिसमें लाल तथा पीले फूल निकलते हैं। इस फूल कड़े दाने कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं और हमेशा चमकदार बने रहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जब तक जीवन है, तब तक ऐसे ही बने रहो। दूसरा यह माला एक बीज है। बीच सदैव भूमि से जुड़कर ही खुद को विस्तारित करता है। इसका अर्थ यह है कि कितने भी बड़े क्यों बन जाओ हमेशा अपनी भूमि से जुड़े रहो। 


भगवान श्रीकृष्ण वैजयंती माला दो कारणों से पहनते थे। पहला कारण यह कि वैजयन्ती माला में शोभा, सौन्दर्य और माधुर्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मीजी छिपी रहती हैं क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के हृदय में श्रीराधा के चरण विराजमान रहते हैं इसलिए लक्ष्मीजी ने वैजयन्ती माला को अपना निवास बनाया जो हर समय भगवान के वक्षस्थल पर रहती है। दूसरा कारण यह कि श्रीकृष्ण को यह माला निरंतर राधा की याद दिलाती रहती थी जिसे पहले मथुरा का एक माली बनाकर लाता था।

वैजयंती के फूल और माला अति शुभ और पवित्र है। वैजयंती फूलों का बहुत ही सौभाग्यशाली वृक्ष होता है। इसकी माला पहनने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस माला को किसी भी सोमवार अथवा शुक्रवार को गंगाजल या शुद्ध ताजे जल से धोकर धारण करना चाहिए।

वैजयंती के बीजों की माला से भगवान विष्णु या सूर्यदेव की उपासना करने से ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव खत्म हो जाता है। खासकर शनि का दोष समाप्त हो जाता है। इस माला को धारण करने से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। इसको धारण करने या प्रतिदिन इस माला से अपने ईष्ट का जप करने से नई शक्ति का संचार तथा आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है।

इस माला को धारण करने से मान सम्मान में वृद्धि होती है। मानसिक शांति प्राप्त होती है, मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में वैजयंती के बीजों की माला धारण करना बहुत ही शुभ फलदायक है। 

Hare Krishna.....

 

Male Infertility: Causes, Impact, and Consequences for Nations

Abstract: Male infertility is a complex and multifactorial issue that has profound implications not only for individuals and couples but al...