कोरोना महामारी ने सम्पूर्ण विश्व में लगभग १. १२ करोड़ लोगों को संक्रमित किया है और लगभग ५. ३ लाख लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। हमारे देश भारत में ही लगभग ७ लाख लोग संक्रमित पाए गए हैं हालाँकि इनमें लगभग 4. २५ लाख लोग इस महामारी से ठीक भी हुए हैं। महाराष्ट्र , दिल्ली और तमिलनाडु राज्य की स्थिति काफ़ी नाज़ुक है। यदि कोरोना के बढ़ते आँकड़े रुक गए होते, तब तो कोई बात नहीं थी, किन्तु आये दिन कोरोना के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। हमारी भारत सरकार और राज्य सरकारें कोरोना से निज़ात पाने के मुहिम में पुरजोर प्रयास कर रही हैं लेकिन सफलता उस हिसाब से नहीं मिल पा रही है जिसकी हम लोगों को उम्मीद थी।
इस महामारी के निरंतर बढ़ने का श्रेय हम आम नागरिक को ही जाता है। हम भारत सरकार और राज्य सरकारों को दोषी नहीं ठहरा सकते कारण यह है कि हम लोगों ने इस कोरोना महामारी को प्रारंभ में बहुत हल्के में लिया और सरकार के बताये हुए नियमों का पालन ठीक ढंग से नहीं किया। जो एक जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए था। अब सवाल यह उठता है कि गलती कहाँ पर हुई ? तो इसका उत्तर बहुत ही सरल है और वह है हम सभी का का गैर जिम्मेदारानापन तथा अपने आपको अपने से धोखा देने की परंपरागत और झूठी शान। जब सरकार ने लाकडाउन किया तब हम थोड़े दिन में ही तसल्ली खो बैठे थे। पूरा अफरा -तफरी मचा डाली, कहीं रोटी का रोना रोया तो कहीं नौकरी का तो कही अपने घर वापसी का। और थोड़े से दुःख को बर्दास्त न कर सके।
आज भी सड़क पर बहुतायत लोगों को बिना मास्क और सोशल डिस्टैन्सिंग के देखा जा सकता है। ऐसे लोग अब समाज के लिए खतरा बने हुए हैं। इन्होंने तो जैसे मन बना लिए है कि न जियेंगे और न ही जीने देंगे। अब भी जहाँ पाते हैं वहीँ पर थूक देते हैं। बिना कार्य के ही बहाना बनाकर घर से बाहर जाते हैं। यदि पुलिस ने पूँछा भी तो कोई न कोई पुख्ता बहन जरूर होता है इनके लिए। मास्क भी लगाते हैं तो ठुड्डी पर। पुलिस को देखा तब सही कर लिया।
हम यह क्यों नहीं सोचते कि इस से पुलिस को क्या नुकसान है वह तो अपनी ड्यूटी करते हैं। कोरोना महामारी में सबसे ज़्यादा परेशानी तो डॉक्टर और पुलिस तथा इन के विभाग से जुड़े लोगों को ही हुआ है. हम इनका उपकार जीवन में कभी भी नही भूलेंगे। यह भी हमारी तरह अपने परिवार के सर्व प्रिये हैं फिर भी अपनी जिंदगी को दावँ पर लगाकर हमारी सुरक्षा करने में डटे रहते हैं।
कोरोना की वैक्सीन बनाने की मुहीम जोरों पर है। कई संस्थान इस मुहीम में लगे हुए हैं। अभी कल मैंने एक संभ्रांत सज्जन व्यक्ति से पूछा कि भाई साहब आपने मास्क क्यों नहीं लगाया है और सोशल डिस्टेंसिंग का क्या हुआ कि आप एक ही मोटर साइकिल पर तीन लोग सवार होकर जा रहे हो। उन्होंने जो उत्तर दिए वह सुनकर मेरे तो पसीने आ गए। उन्होंने कहा कि डॉक्टर साहब यह कोरोना उनका क्या बिगाड़ेगा? अगले महीने वैक्सीन आ जाएगी फिर हम सपरिवार अस्पताल में जाकर लगवा लेंगे। अब कौन इन्हें समझाए कि वैक्सीन आने में अभी समय है। जिस हिसाब से आकड़े बढ़ रहे हैं यह देख कर एक- एक दिन बड़ा लग रहा है। चलो थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि यदि तय समय पर वैक्सीन आ भी जाती है तो भी यह क्या सभी १३७ करोड़ नागरिकों को तुरंत मिल जाएगी ? इस पर कितना ख़र्च लगेगा ? इसका भी अभी मानक तय नहीं हुआ है।
आप सभी से अनुरोध है कि इस महामारी को इतने हल्के में मत लें , जितना हो सके सावधानी बरतें। भारत सरकार और राज्य सरकार के बताये हुए नियमों का पालन करें। ध्यान रहे हमारी एक छोटी सी लापरवाही हमारे पूरे परिवार पर बहुत भारी पड़ सकती है। इस कहावत को सच न होने दें " सावधानी हटी और दुर्घटना घटी" .
जहाँ यह महमारी अपना पैर पसार रही है वहीँ बहुत अधिक अनुपात में लोग इस बीमारी को जीत कर बाहर भी आ गए हैं। बस ! हमे हौशला रखना है, मास्क पहनना है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है और अपने हाथों को भली भाँति हर घण्टे साबुन से धोते रहना है।
विश्वास करें , हम अवश्य जीतेंगे।
जय हिन्द , जय भारत .
डॉ. प्रेम दत्त द्धिवेदी।
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