प्रिये मित्रों अपने वादे के अनुसार मैं आप सभी के समक्ष पुनः प्रस्तुत हुआ हूँ। इस ब्लॉग के माध्यम से आज मैं आप को भूनिम्बादि काढ़ा बनाने में उपयुक्त सामग्रियाँ और इसके बनाने की विधि के बारे में बताउँगा।
इस काढ़ा को बनाना बहुत ही आसान है। बस ! आवश्यकता इस बात की है कि जो सामग्री (जड़ी - बूटी) इसमें प्रयुक्त होती है उसकी समुचित मात्रा ही होनी चाहिए तथा मिलावटी नहीं होनी चाहिए यह सब सामग्री आपको किसी भी पंसारी की दुकान से आसानी से मिल जाएगी। आपके सुलभता के लिए मैं जड़ी- बूटियों के वानस्पतिक नाम को भी लिख रहा हूँ।
इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री निम्नलिखित है।
- कालमेघ /चिरायता (Andrographis paniculata - whole plant )
- चन्दन काष्ठ (Santalum album -heart wood)
- काली मिर्च (Piper nigrum -fruits)
- सोंठ (Zingiber officinale - Dry ginger - rhizome)
- मोथा की जड़ (Cyperus rotundus - rhizome)
- खस -खस/ उशीरा की जड़ (Vettivera zizanoides - root)
- ह्रिवेरा / वलाक की जड़ (Coleus vettiveroides - root)
- करेला का पूरा पौधा (Momordica charantia - whole plant) अथवा चिचिंडा का पौधा (Trichosanthes cucumerina) - whole plant
- परपटका / खेत पापड़ा (Molugo cerviena- whole plant)
काढ़ा बनाने की विधि- ( यहाँ पर केवल एक वयस्क व्यक्ति या एक ख़ुराक़ के बनाने की विधि बताई जा रही है। अब जितने लोगों को लेना है उतने लोगों के लिए अनुपात बढ़ा लेना चाहिए )
सर्व प्रथम एक साफ बर्तन में २-३ ग्राम पिसी जड़ी बूटी के पाउडर को २०० मि.ली. पीने के पानी में रख कर धीमी आँच में उबालें। इसे तब तक उबालते रहे जब तक कि यह एक चौथाई तक हो जाये। अब इसको बर्तन में से साफ सूती कपडे या छननी से छान लें। आपके लिए काढ़ा बनकर तैयार है।
सेवन की विधि- छाने हुए काढ़े में से ३० मि.ली. लेकर इसमें इतना ही गुनगुना पानी मिला लें और सुबह के नाश्ते के बाद तुरंत गुनगुना सेवन करें। ऐसे एक सप्ताह में केवल दो दिन लें। इस से आपकी इम्युनिटी बराबर बनी रहेगी। औषधि को स्वादिष्ट बनाने के लिए देशी गुड़ का प्रयोग किया जा सकता है। किन्तु बिना मीठा किये पीना अधिक गुणकारी होता है।
यदि कोई व्यक्ति पहले से सर्दी, जुक़ाम, बुखार या डेंगू अथवा मलेरिआ से संक्रमित है तब इस अवस्था में काढ़े का प्रयोग सुबह खाली पेट और शाम को खाने से पहले दोनों समय लगातार ५ दिन तक करना चाहिए। इसके बाद हफ्ते में केवल दो दिन तक लेना चाहिए। ऐसे करने से मरीज़ पूर्ण रूपेण स्वस्थ्य हो जाता है।
नोट : यह औषधि ५ वर्ष के नीचे उम्र के बच्चों के प्रयोग के लिए नहीं है। ५-१० साल तक के बच्चों को ८-१० मि.ली. औषधि उपरोक्त विधि द्वारा दी जा सकती है।
संदर्भ : सिद्ध फारमूलरी ऑफ़ इंडिया के " सिद्ध वैद्य थिराट्टु " के निलावेम्बू कुडिनीर के बनाने की विधि पर आधारित।
डॉ. प्रेम दत्त द्धिवेदी।
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